स्वामी विवेकानंद का संपूर्ण जीवन, उनके संघर्ष और उनके विचारधारा, ये सभी सैकड़ों लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।
स्वामी विवेकानंद ने अपनी तेजस्वी वाणी और अपने प्रभाव से विदेशों में भी भारतीय संस्कृति और अध्यात्म का डंका बजाया।
- News18Hindi
- आखरी अपडेट:10 जनवरी, 2021, 1:31 PM IST
पिता की मृत्यु ने भी नहीं तोड़ा मनोबल
स्वामी विवेकानंद (स्वामी विवेकानंद) ने अपनी तेजस्वी वाणी और अपने प्रभाव से विदेशों में भी भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिक आत्मा का डंका बजाया। उनके द्वारा सदैव वैज्ञानिक सोच और तर्क पर बल ही नहीं दिया गया, बल्कि उन्होंने धर्म को लोगों की सेवा और सामाजिक परिवर्तन से जोड़ने की अपनी विचारधारा को भी लोगों तक पहुंचाने का कार्य किया। जब स्वामी विवेकानंद 20 वर्ष के थे, तब तक उनके पिता विश्वनाथ दत्त की मृत्यु हो गई थी। ऐसे में पिता की मृत्यु के बाद स्वामी विवेकानंद को भी, अत्यंत गरीबी की मार का सामना करना पड़ा था लेकिन गरीबी और भूख भी उनका मनोबल और विश्वास नहीं डगमगा सकी।
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स्वामी विवेकानंद का संपूर्ण जीवन, उनके संघर्ष और उनके विचारधारा, ये सभी सैकड़ों लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं क्योंकि स्वामी विवेकानंद के विचारों पर चलकर ही लाखों-करोड़ों युवाओं ने अपने जीवन में सही बदलाव कर उसे सार्थक बनाया। सन् 1893 में स्वामी विवेकानंद को अमेरिका के शिकागो में आयोजित किए गए विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व करने का अवसर मिला था। स्वामी विवेकानंद जी, रामकृष्ण परमहंस के सुयोग्य शिष्य थे और उन्होंने ही रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी, जो आज भी भली-भांति जनहित के लिए कार्य कर रहा है। (साभार- एस्ट्रोसेज.कॉम)
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