यह भी पढ़ें: शायरी: क्या जानिए उस से कब मिलेंगे, पढ़ें मीर हसन की शायरी
1। तुझे क्या ख़बर मिरे बे-ख़बर मिरा सिलसिला नं और है
जो मुझी को मुझसे से बहम करे वो गुरेज़-पा न और हैमिरे मौसमों के भी थे मिरे बर्ग-ओ-बार ही थे और थे।
लेकिन अब रविश अलग नहीं है लेकिन अब हवा नहीं और है
यही शहर शहर-ए-क़रार है तो दिल-ए-शिकस्ता की ख़ैर हो
मिरी आस कोई है और से मुझे कोई पूछता है और है
ये वो माजरा-ए-फ़िराक है जो मोहब्बतों से न खुलता है
कि मोहब्बतों में के दरमियाँ सबब-ए-जफ़ा न और है
क्या मोहब्बतों की अदायें यही हिजरतें हैं और यही क़ुर्बतें हैं
दिए गए बाम-ओ-दर किसी और ने तो बसा न और है
ये फ़ज़ा के रंग खुले खुले समान पेश-ओ-पस के सिलसिले हैं
अभी ख़ुश-नव कोई और अभी तक कु-कुशा न और है
दिल-ए-ज़ुद-रंज न कर गिला किसी गर्म ओ सर्द रक्बीब का
रुख़-ए-ना-सज़ा तो है रू-ब-रू पस-ए-न-सज़ा न और है
बहुत आया हमदम ओ-गर-जो जोमूद-ओ-नाम के हो गए हैं
जो ज़वाल-ए-ग़म का भी ग़म करे वो ख़ुश-आश्ना नो और है
ये ‘नसीर’ शाम-ए-सुपुर्दगी की उदास उदास सी रौनी
ब-कनार-ए-गुल ज़रा देखना ये तेरी हो या ना और है।
यह भी पढ़ें: तड़प उठा मेरा मुंसिफ़ भी फ़ैसला दे कर, अदीम हाशमी की शायरी
2। वह हम-सफ़र था लेकिन वह से हम-नवि न था
उस धूप छाँव का आलम रहा जुदाई न था
न अपना रंज न और न का दुख न तेरा मलाल
शब-ए-फ़िराक कभी हम ने यूँ गँवाई न थी
मोहब्बतों का सफ़र इस तरह भी गुज़रा था
शिकस्ता-दिल थे मुसाफ़िर शिकस्ता-पाया न था
अदावतें थे, तग़ाफ़ुल थे, रंजिशें थीं
बिछड़ने वाले में सब कुछ था, बेवफ़ाई न थी
बिछड़ते वक़्त उन आँखों में हमारी ग़ज़ल थी
ग़ज़ल भी वो जो किसी को अभी सुनाई न थी
पर्यत पुकार रहा था वह डूबता हुआ दिन
सदा तो आई थी लेकिन कोई दुहाई न थी
कभी ये हाल कि दोनों में यक-दिली बहुत था
कभी ये मरहला जैसे कि आश्नाई न था
अजीब होती है राह-ए-सुख़न भी देख ‘नसीर’
वहाँ भी आ गए ओपिर, जहाँ रसाई न थी।
।