आचार्य के गुरुकुल में शिक्षक रहते समय ही सेल्युकल या कहें सिकंदर का परिचय हुआ था। इससे नाराज आचार्य ने उचित समय और परिस्थितियों को इंतजार किया बगैर ही जहां वे थे वहां से आक्रमणकारियों को धूल चटाने की नीति पर कार्य आरंभ कर दिया था। विदेशी आक्रांताओं को राष्ट्रस्त