झांसी की रानी
झांसी की रानी के बारे में किसने नहीं सुना होगा। उनकी दिलुरी भरी कारनामों से तो अंग्रेजों के भी छक्के छूटते थे। झांसी की रानी ने सन 1857 के विद्रोह में प्रमुख सेनानी के रूप में हाल ही में लिया था। हम आज उन्हें उनकी हृदयुरी के कारण ही याद करते हैं।
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बेगम हजरत महल
सन 1857 के विद्रोह में बेगम हजरत महल का नाम शवर्ण वर्ण में लिखा गया। वे पहली महिला स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने अंग्रेजों के शोषण के खिलाफ देश के गांव गांव को एक करने का जिम्मा उठाया था। उन्हें उन्होंने अंग्रेजों से आमना सामना किया और लखनऊ पर कब्ज़ा किया। उन्हें अपने ही बेटे को अवध का राजा भी घोषित किया गया। हालांकि, बाद में अंग्रेजों ने उन्हें उन्नाव में नेपाल भेज दिया।
सरोजिनी नायडू
निश्चित रूप से सरोजिनी नायडू आज की महिलाओं के लिए एक रोल मॉडल हैं। जिस जमाने में महिलाओं को घर से बाहर निकलने तक की आजादी नहीं थी, सरोजिनी नायडू घर के बाहर एक कर देश को आजाद करने के लक्ष्य के साथ दिन रात महिलाओं को जागरूक कर रही थीं। सरोजिनी नायडू उन चुनिंदा महिलाओं में से थे जो बाद में INC की पहली प्रेज़िडेंट बनीं और उत्तर प्रदेश की गवर्नर के पद पर भी बने रहे। वह एक कवयित्री भी थीं।
सावित्रीभाई फुले
महिलाओं को शिक्षित करने के अभिनवव को उन्होंने कहा जन जन में फैलाने का जिस्ममा उठाया था। उन्हें उन्होंने ही कहा था कि अगर आप किसी लड़के को शिक्षित करते हैं तो आप अकेले एक शख्स को शिक्षित कर रहे हैं, लेकिन अगर आप एक लड़की को शिक्षा देते हैं तो पूरे परिवार को शिक्षित कर रहे हैं। उन्हें अपने समय में महिला उत्पीड़न के कई पहलू देखे थे और लड़कियों को शिक्षा के अधिकार से वंचित होते देखा था। ऐसे में तमाम विरोध झेलने और अपमानित होने के बावजूद उनके पास लड़कियों को मुख्य धारा में लाने के लिए उन्हें आधारभूत शिक्षा प्रदान करने की जिस्मम सूची उठाई थी।
विजयलक्ष्मी पंडित
जवाहरलाल नेहरू की बहन विजयलक्ष्मी भी देश के विकास के लिए तमाम गतिविधियों में बढ़चढ़ कर मूषा लेसा थे। उन्होंने कई वर्षों तक देश की सेवा की और बाद में संयुक्त राष्ट्र जनरल असेंब्ली की पहली महिला प्रेज़िडेंट भी बनीं। वे डिप्लोमैट, राजनेता के अलावा लेखिका भी थे
अरुणा आसफ अली
अरुणा आसफ अली उस दौर में कांग्रेस पार्टी की सक्रिय सदस्य बनी रहीं और देश की आजादी के लिए कंधे से कंधा सहित स्वतंत्रता संग्राम में स्टीरियो लग गई। जेल होने पर उन्हें तिहाड़ जेल के राजनैतिक कैदियों के अधिकारों की लड़ाई भी लड़ी। जेल में रहने पर उन्हें कैदियों के हित के लिए भूख हड़ताल करनी पड़ी। इसके लिए उन्हें कालकोठरी की सजा झेलनी पड़ी थी।
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भीकाजी कामा
भीकाजी कामा को भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष के इतिहास में सबसे बहादुर महिला के रूप में भी याद किया जा सकता है। लिंग समानता के लिए भी उन्होंने कई राशियों और नए मंच को हटा दिया। वे भारतीय होम रूल सोसायटी स्थापित करने वालों में से एक बने रहे। उनके पास कई क्रांतिकारी साहित्य लिखे। (अस्वीकरण: इस लेख में दी गई जानकारी और सूचना सामान्य जानकारियों पर आधारित हैं। हिंदी समाचार 18 इनकी पुष्टि नहीं करता है। ये पर अमल करने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से संपर्क करें।)
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