ऐसे बनता है शिलाजीत
बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक शिलाजीत, जैसा कि इसका नाम है, ये शिलाओं यानी टुकड़ों में पाया जाता है। विशेष रूप से तिब्बत, हिमालय और गिलगिट क्षेत्र की कुछ खास तरह की चट्टानों में। गाढ़े भूरे रंग की इस पत्थरनुमा चीज़ को तलाशना भी बहुत आसान नहीं होता है।
धातुओं और पौधों के घटकों से मिलकर तैयार हुई इस चीज़ को उसकी विशेष प्रकार की गंध से भिन्नाना जाता है। धड़ से निकाल कर इसको साफ किया जाता है और छोटे छोटे टुकड़ों में तोड़ा जाता है। इसके बाद इसको निश्चत मात्रा के पानी में तब तक घुमाया जाता है जब तक ये घुल नहीं जाता। फिर कुछ घंटों बाद पानी की सतह से गंदगी को बचाया जाता है।
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आखिर में इस पानी से हानिकारक तत्वों को छानकर अलग किया जाता है। इस पानी को एक हफ़्ते तक ऐसे ही रखा जाता है। जब पानी का रंग बिलकुल काला हो चुका होता है तब ये माना जाता है कि शिलाजीत पूरी तरह पानी में घुल चुका है।इसके बाद शिलाजीत के पानी को एक शीशे से बने हुए खास तरह के बर्तन में रखा जाता है। तबरीबन एक महीने तक उसका पानी सूखता रहता है। इस कार्य में लगभग डेढ़ महीने का समय लग जाता है। तब जाकर ये तैयार होता है। अच्छे शिलाजीत में आयरन, ज़िंक, मैग्नीशियम सहित 85 प्रकार के खनिज तत्व पाए जाते हैं। भारत में 10 ग्राम शिलाजीत 300 रुपये से लेकर 600 रुपये तक बेचा जाता है।
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कई रोगों के इलाज में फायदेमंद है
दवा के तौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले इस शिलाजीत को खासकर पुरुषों में शारीरिक क्षमता बढ़ाने के लिए जाना जाता है। लेकिन इसमें कई और रोग को दूर करने की शक्ति भी होती है। शिलाजीत ब्लड में ग्लूकोज के स्तर को कम करने में सहायक है। इम्युनिटी बढ़ाता है। यह अलज़ाइमर, डिप्रेशन और दिमाग़ के लिए बहुत फायदेमंद होता है।
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