१। फ़िरिश्तों से भी अच्छा मैं बुरा होने से पहले था
वह मुझसे से इंडीई ख़ुश ख़फ़ा होने से पहले था
किया करते थे ज़िंदगी-भर के साथ देने कीमगर ये हौसला हम में जुदा होने से पहले था
हक़ीक़त से ख़याल अच्छा है बेदारी से ख़्वाब अच्छा
तसव्वुर में वह कैसा सामना होने से पहले था
अगर मादूम को पेश कहना में तअम्मुल है
तो जो कुछ भी यहाँ है आज क्या होने से पहले था
किसी बिछड़े हुए का लौट आना ग़ैर-मुमकिन है
मुझे भी ये गुमाँ इक तजरबा होने से पहले था
‘शुऊर’ इस से हमें क्या इंटक के बा’द क्या होगा
बहुत होगा तो वह जो इब्तिदा होने से पहले था।
२। हवस बला की मोहब्बत हमें बला की है
कभी बुतों की ख़ुशामद कभी ख़ुदा की है
किसी को चाहने वाले यही तो हैं
बड़ा कमाल किया है अगर वफ़ा की है
गुज़र बसर है हमारी फ़क़त क़नाअत पर
नसे ने कहा कि दौलत हमें अता की है
तमाम रात पड़ी गुज़ारने के लिए थी
चुनाँचे ख़त्म सुराही ज़रा ज़रा की है
शराब से कोई रगबत नहीं है
हकीम ने हमें तज्वीज़ ये दवा की है
ज़रा सी देर को आए थे अलख़ इधर लेकिन
यहीं जनाब ने मग़रिब यहीं इशा की है
तुम्हारा चेहरा-ए-सुर-नूर देखता है तो
यक़ीन ही नहीं आता है कि जिस्म ख़ाकी है
मुझे अज़ीज़ न हो क्यूँ रिजाइयत ”
ये ग़म-शरीक मिरे दौर-ए-इब्तिला की है
‘शुऊर’ ख़ुद को ज़हीन आदमी समझते हैं
ये सादगी है तो वल्लाह इंसा की है।
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